मुनिआलोक जैसी मिलनसारिता बेहद कम देखने मे आती है: डा. इंद्र विजय
Muni Alok
बेहद ही विन्रम,सादगी व मिलनसार है डा. इंद्र विजय: मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक
चंडीगढ, 28 सिंतबर: Muni Alok: आज मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक सैक्टर 28 मे श्वेताम्बर जैन मंदिर मे क्षमायाचना के करने के लिए पधारे। इस दौरान मूर्ति पूजक संप्रदाय के डा. इंद्र विजय से मनीषीसंत ने क्षमायाचना की। इंद्र विजय ने कहा मनीषीसंत की बडी हिम्मत है कि आप क्षमायाचना करने के लिए 8 किलोमीटर का सफर तय करके आये यह साधु चर्या के साथ सम्यक आचार को दर्शाता हेै आपश्री के पास सम्यक बहुत है और इसका ही परिणाम है कि आपश्री क्षमायाचना करने के लिए यहां सभी स्थानो पर जाकर आये। मुनिआलोक जैसी मिलनसारिता बेहद ही कम देखने को मिलती है।
इस दौरान मनीषीसंत ने कहा इंद्र विजय जो बेहद ही सादगी व मिलनसार व्यक्तित्व के मालिक है। उनकी सादगी का परिचय उनका व्यवहार व बोलने का ढंग बता रहा था जब मुनिश्री ने वहां से चले तो डा. इंद्र विजय उन्हे गेट तक सम्मानपूर्वक छोडऩे के लिए खुद गये ये उनकी सादगी को दर्शाता है।
बिना मर्यादा और अनुशासन के प्राणवत्ता नहीं टिक पाती:
मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक
चंडीगढ, 28 सिंतबर: तेरापंथ धर्मसंघ एक प्राणवान संगठन है और उसमें मर्यादाओं का सर्वाधिक महत्व है। इसके आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने तत्कालीन समाज की दुर्दशा एवं अनुशासनहीनता को देखते हुए मर्यादाओं का निर्माण किया। न केवल साधुओं के लिये बल्कि श्रावकों-श्रद्धालुओं के लिये भी नियम बनायें। सम्यक् श्रद्धा और आचार शुद्धि को मद्देनजर रखते हुए उन्होंने मर्यादा की लक्ष्मण रेखा बनाई। आचारनिष्ठा, विचार शुद्धि, संगठन की सुघड़ता एवं सुव्यवस्था ही उनका प्रमुख ध्येय था। धर्म-संगठन की सुदृढ़ता व चिरजीविता का रहस्य है इसकी मर्यादाएं। मर्यादाओं की सुदृढ़ प्राचीर में संघ की इमारत अपनी सुरक्षा व खूबसूरती को कायम रखे हुए है। बिना मर्यादा और अनुशासन के प्राणवत्ता टिक नहीं पाती, क्षमताएं चुक जाती हैं। मर्यादा धर्म संगठनों का त्राण है, प्राण है, जीवन रस है। अंधियारी निशा में उज्ज्वल दीपशिखा है। समंदर के अथाह प्रवाह में बहते जहाज के लिए रोशनी की मीनार है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक ने आज मर्यादा महोत्सव के अवसर पर अणुव्रत भवन सैक्टर 24सी तुलसीसभागर मे सभा को संबोधित करते हुए कहे।
मनीषीसंत ने आगे कहा विश्व क्षितिज पर अनेक संघ, संप्रदाय, संस्थान उदय में आते हैं और काल की परतों तले दब जाते हैं। वही संगठन अपनी तेजस्विता निखार पाते हैं, जिनमें कुछ प्राणवत्ता हो, समाज के लिए कुछ कर पाने की क्षमता हो।
आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने अपनी प्रखर आध्यात्मिक प्रतिभा से समूचे राष्ट्र को प्रेरित किया है और उन्हीं की ऊर्जा से तेरापंथ धर्मसंघ का मर्यादा महोत्सव जन-जन की आस्था का केन्द्र भी बना है, एक प्रेरणा बना है। यह महोत्सव मात्र मेला ही नहीं है, सैकड़ों प्रबुद्ध साधु-साध्वियों का मिलन संघीय इतिहास में श्री स्वस्ति का उद्घोषक बनता है। वह मात्र आयोजनात्मक ही नहीं, वह संघ के फलक पर सृजनशीलता के नये अभिलेख अंकित करता है। महोत्सव के समय ऐसा लगता है मानो नव निर्माण के कलश छलक रहे हैं, उद्यम के असंख्य दीप एक साथ प्रज्वलित हो रहे हैं। हर मन उत्साह से भरा हुआ, हर आंख अग्रिम वर्ष की कल्पनाशीलता पर टिकी हुई और हर चरण स्फूर्ति से भरा हुआ प्रतीत होता है। यह महापर्व पारस्परिक संबंधों को प्रगाढ़ता प्रदान करता है। उनमें अंतरंगता लाता है। अनेकता में एकता का बोध कराता है। मर्यादा महोत्सव संघीय चेतना का अदृश्य वाहक है। इसमें वैयक्तिक और संघीय गति, प्रगति एवं शक्ति निहित है। स्वयं को समग्र के प्रति समर्पित करने का अनूठा महोत्सव है यह। इसका संदेश है स्वयं को अनुशासित करो, प्रकाशित करो और दूसरों को प्रेरणा दो। अपेक्षा है एक धर्मसंघ में मनाया जाने वाला यह अनूठा पर्व, समग्र मानवता का उत्सव बने।
मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया मर्यादा महोत्सव इस सोच और संकल्प के साथ आयोजित होता है कि हमें कुछ नया करना है, नया बनना है, नये पदचिह्न स्थापित करने हैं। बीते वर्ष की कमियों पर नजर रखते हुए उन्हें दोहराने की भूल न करने का संकल्प लेना है। हमें यह संकल्प करना और शपथ लेनी है कि आने वाले वर्ष में हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जो हमारे उद्देश्यों, उम्मीदों, उमंगों और आदर्शों पर प्रश्नचिह्न टांग दे। सहिष्णुता यानि सहनशीलता। दूसरे के अस्तित्त्व को स्वीकारना, सबके साथ रहने की योग्यता एवं दूसरे के विचार सुनना- यही शांतिप्रिय एवं सभ्य समाज रचना का आधारसूत्र है और यही आधारसूत्र को मर्यादा महोत्सव का संकल्पसूत्र है।
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